Supreme Court Decision on Village Name: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी राजस्व गांव का नाम व्यक्ति, धर्म, जाति, उपजाति के नाम पर नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के नोटिफिकेशन और हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश को रद्द करते हुए कहा- सरकार अपनी नीति से अलग जाकर काम नहीं कर सकती है। नीति में बिना संशोधन के की गई कोई भी कार्रवाई मनमानी है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है यह आदेश जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की बेंच ने भीकाराम व अन्य की अपील पर सुनवाई करते हुए दिया।
दोनों व्यक्तियों ने दी थी गांव के लिए जमीन राज्य सरकार ने बाड़मेर जिले में नए राजस्व गांव बनाए थे। सोडा ग्राम पंचायत में बने दो राजस्व गांवों के नाम अमराराम और सगत सिंह के नाम पर अमरगढ़ और सगतसर रखा गया था। दोनों की ओर से गांव के लिए निजी भूमि भी दी गई थी। राज्य सरकार ने 31 दिसंबर 2020 को इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी थी। इसे भीकाराम व अन्य ने हाईकोर्ट की एकलपीठ में चुनौती दी थी। इस पर एकलपीठ ने 11 जुलाई 2025 को नोटिफिकेशन रद्द कर दिया। लेकिन हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 5 अगस्त 2025 को सिंगल बेंच के आदेश को रद्द कर दिया।
अधिसूचना नीतिगत निर्णय से ऊपर नहीं हो सकती सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्य सरकार का 20 अगस्त 2009 का सर्कुलर कहता है कि किसी भी राजस्व गांव का नाम व्यक्ति, धर्म, जाति, उपजाति के नाम पर नहीं हो सकता है। जहां तक संभव हो, गांव का नाम आम सहमति से प्रस्तावित किया जाएगा। यह सर्कुलर एक नीतिगत निर्णय है। वहीं सरकार की ओर से कहा गया कि राजस्व गांवों के सृजन के लिए निर्धारित वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया था। साल 2009 का सर्कुलर केवल निर्देशात्मक था।