Urukram Sharma Opinion- पहाड़ दरक रहे हैं। बादल फट रहें है। नदियां उफान पर है। सड़कें दरिया बन गई। सड़क है या गद्दों में सड़कें, नजर नहीं आ रही है। गांव है या शहर, सब एक जैसे नजर आ रहे हैं। मानसून ने सब पोल खोल दी। शहरों की स्ट्रीट लाइट्स बंद है, पता ही नहीं चलता जयपुर में चल रहे हैं या दूरदराज के किसी गांव में। सड़कों का हाल ये है कि गढ्डों का साम्राज्य जमा है। बरसात से कुछ दिन पहले खोदी गई सड़कें अब पूरी तरह बर्बाद है। लाखों रुपए खर्च करके मार्च अप्रैल में सड़कें बनाई, उसके बाद पाइप ओर सीवर लाइन के नाम पर खोदी गई। अब मिट्टी भरकर छोड़ दी गई।
भारी वाहन रोज गुजरते हैं और मिट्टी में धंस जाते है। कार वालें और दुपहिया चालक हर पल मौत लेकर साथ चल रहे है। पांच्यावाला से बिंदायका इंडस्ट्रियल एरिया तक, बजरी मंडी से आगे तक, गांधी पथ पश्चिम से गिरधारीपुरा तक और तमाम आसपास के इलाकों का ये ही हाल है। इन क्षेत्रों में लाखों लोग रह रहे है। कैबिनेट मिनिस्टर का तो निर्वाचन क्षेत्र और घर भी यहीं है। लेकिन उन्हें कुछ नजर नहीं आ रहा है। आए भी कैसे, वोटों का टाइम थोड़े है।
अंडर ब्रिज से जरा सी बरसात में इतना पानी भर जाता है, निकालने का कोई इंतजाम नहीं। नीति निर्धारक या तो समझते नहीं या समझना नहीं चाहते है, ये गंभीर सवाल है। जयपुर की जवाहरलाल नेहरू मार्ग और टोंक रोड को वीआईपी रोड कहा जाता है, बरसात में इतना पानी भरता है कि कोई वहां गुजर नहीं सकता है। सरकार बरसात के पानी को बचाने के लिए कठोर नियम बना चुकी। लेकिन सब जनता पर लागू हैं।
सड़कों के बरसाती पानी के संग्रहण का इंतजाम कर लिया जाए, हर सड़क पर वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था हो तो जयपुर का वाटर लेवल ही बढ़ जाए। पर ये प्रशासन और अफसर कभी नहीं होने देंगे। मानसून में सड़कों के और शहर के ये हालात देखने के लिए साल भर इंतजार करते है। टूटी सड़कों और गढ्डों को देखकर तो उनकी बांछे खिल जाती है। क्योंकि लक्ष्मी उनके द्वार पर जो खड़ी होती है। अब सरकार इन सबको ठीक करने के लिए करोड़ों रुपए का बजट देगी। कमीशन के मजे होंगे। लाखों रुपए अफसरों की जेबों में जायेंगे। मौज ही मौज। कहें तो साफ है कि अफसरों के कीलें लगी है, आवाज कहा से सुने। – डॉ उरुक्रम शर्मा