Jaipur News: इस दोहे की पंक्तियां स्पष्ट करती हैं कि गुरु की महिमा वर्णित होती है। गुरु का ज्ञान एक शिष्य की पूरी जीवन की दिशा का निर्धारण करता है। इसलिए कहा गया है कि, गुरु की गोद में निर्माण व प्रलय दोनों निवास करते हैं। भारत में गुरु व शिष्य के संबंधों को सदैव उचित स्थान दिया गया है। संपूर्ण समाज में गुरु असाधारण व्यक्ति माना जाता है, लेकिन क्या वर्तमान समय में भी गुरु की पहचान उसके आदर्श मूल्य व उच्च चरित्र है?
नहीं क्योंकि आज गुरु बनने की प्राथमिकता सरकारी नौकरी पाना है। आर्थिक व्यवस्था के हो स्त्रोत का नाम गुरु हो गया है। आज के गुरु ज्ञान का प्रचार कक्षाओं में नहीं बल्कि ट्यूशन क्लासेस में करते हैं। वह अध्ययन वस्तु को प्रायोगिक व उद्देश्य पुणे न बनाकर रटन विद्या बना देते हैं, ताकि विद्यार्थी रट कर अगली कक्षा में प्रस्थान कर ले। लेकिन क्या यह पद्धति युवा पीढ़ी का सही मार्गदर्शन कर रही है या शिक्षित मूल्य हीनता वाले समाज का निर्माण कर रही है।
कई ऐसे प्रश्न है जो गुरु की महिमा पर चयनित हो चुके हैं। कई अनुसंधान में प्रमाणित किया जा चुका है, कि युवा पीढ़ी में ज्यादा असंतोष शिक्षा प्रणाली से है। जिसमें विद्यालय प्रवेश से ही भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी की शुरुआत होती है और शिक्षा में नौकरी प्राप्त करने व उसे बनाए रखने के लिए भी गुरु अपने आदर्शों को कहीं पीछे छोड़ देते हैं। समाज शास्त्री डॉ सरोज जाखड ने कहा कि, मैं सभी गुरुजनों से अनुरोध करती हूं कि एक अच्छे समाज का निर्माण हमारे कंधों पर है, इसीलिए सभी गुरु अपने शिष्यों में नैतिक व सामाजिक मूल्यों की स्थापना के साथ-साथ अपने उच्च आदर्शों व अच्छे चरित्र का निर्माण करें।
कान्ती भाई