Navratri 2024: नौ दिन माता के विभिन्न स्वरूपों की पूजा शुरू हो गई। पूरी आस्था और विश्वास के साथ मां की आराधना हर सनातनी कर रहा है। नवरात्रिंके अंतिम दिन देवियों को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लिया जायेगा। हर सनातनी पूरी श्रद्धा और निष्ठा से इस समय मां की आराधना में लगा है। मां, सबकी सदा मनोकामना पूरी करे। नवरात्रा के हर दिन मां, आपसे कहती है, अपना रावण दहन करो और जो कुछ नवरात्र में किया, उसे सदा साबित करो। उसी रावण को जलाना होता है, जिसे आपने खुद पाल पोस कर बड़ा किया है। काम,क्रोध, मद,लोभ, मोह इन्हीं को तो हम सदा अपने साथ रखते है।
अपने लाभ के लिए किसी भी स्तर पर जाते हैं। चाहे उस से किसी को भी कितना नुकसान हो। लोभ के मद में मदमस्त रहते हुए और और और की धुन सवार होती है। और धन कमाने के लिए गलत रास्ते, चाहे वो रिश्वत हो या मिलावट या फिर जरूरत से ज्यादा मुनाफा लेना। किसी की आत्मा को दुखाकर या किसी को तकलीफ देकर कमाया गया धन कभी फलीभूत नहीं हो सकता है। आज के दौर में भले लोग ये नहीं मानते लेकिन बिना माने भी भुगतते जरूर है।
क्रोध तो नाक पर ही सवार रखते है। क्रोध हर फसाद का कारण है। धैर्य हर बात का जवाब है। विनम्रता हर सफलता का राज है। क्रोध से इंसान सदा खोता है और खोता रहेगा, कुछ पा नही सकेगा। परिवार जनों पर क्रोध, दोस्तों पर क्रोध, कार्यस्थल पर क्रोध सब तबाही की कहानी लिखते है। हम कहते हैं गुस्सा बहुत आता है, गुस्से पर काबू नही रहता है। क्यों भाई, जब खुद पर ही नियंत्रण नहीं रख सकते तो किस काम के लिए इंसान हो।
शादीशुदा पुरुष हो या स्त्री, दोनों के लिए एक दूसरे पर क्रोधित होने के कोई कारण ना हो तो भी कारण बन जाते है। जो बहुत बड़ा रूप ले लेते हैं। जिसका सीधा असर परिवार पर और बच्चों पर पड़ता है। बच्चों पर भी क्रोध ऐसे किए जाता है, जैसे उन मासूमों से सरल कोई निशाना ही ना हो। उनकी ऐसे कुटाई करते हैं, जैसे धोबी घाट पर कपड़ों की धुलाई होती है। धैर्य तो इंसान खो ही चुका। विनम्रता उसके शब्दकोश से ही खत्म कर दी।
ठीक इस से भी खतरनाक, काम और मद में मस्त रहने वालों की है। कई बार तो ये सब दृश्य देखकर विचार आता है कि इंसान ने सभी को समान बनाया है, उसने जीवन शैली बताई है, फिर भी हम उसके विपरीत आचरण करके खुद को तो मुश्किल में डालते ही है, मगर दूसरों को भी दर्द देते हैं।नवरात्रि के बाद दशहरा पर रावण जलाने की परंपरा आदि काल से चली आ रही और आदिकाल तक चलेगी।रावण मर नहीं पा रहा। ठीक वैसे ही हम साल में दो बार नवरात्रा पर विशेष साधना करते है, सात्विक आचार, विचार और विहार करते है लेकिन उसके बाद भी अपने रावण को फिर जिंदा कर देते हैं।
बच्ची और स्त्री रूप में जिन बच्चियों की पूजा करते हैं, उन्हें ही भूल जाते है।भूलना मानव का स्वभाव है लेकिन अपने जीवन को जीने का बेहतर तरीका तो उसे खुद ही चुनना होता है। बातें सब करते हैं और करते रहेंगे लेकिन उस पर अमल नहीं करेंगे। यही कारण है की हम नवमी के बाद हर साल बाहरी रावण को जलाते हैं लेकिन अपने रावण को कभी नहीं मारते है। आओ, तय करो। एक साथ नहीं लेकिन धीरे धीरे ही सही हर नवरात्रा को अपने रावण को मारते हैं।
डॉ उरुक्रम शर्मा