Opinion : कसम से बहुत बड़ा हो गया इंसान। छोटे से घर में रहता है और तबियत से सो भी नहीं पता। बड़े ख्वाब लेकर घर छोड़ा था और मां के हाथ की रोटी को भी तरसता है। पैसा तो कमा लेता है लेकिन खुद उसका मजा नहीं ले पाता। सब कुछ किस्तें चुकाने और दिखावे पर ही बीत जाता है। सोचता है मां बाप से अलग रहकर सुकून की ज़िंदगी जी लूंगा, रोता है लेकिन आंसू भी बाहर नहीं निकाल पाता हैं। सोचता है भाई से बड़ा बन जाऊंगा पर भाई के बिना जिंदगी के आनंद से दूर हो जाता है। चमचमाती गाड़ियों में तो घूम लेता है, लेकिन पिता की साइकिल पर बैठकर लिए गए अदभुत अनुभव से दूर हो जाता है।
ऑनलाइन खाना मंगवाकर सड़ा गला खाकर शेखी तो बखार लेता है, किंतु मां के हाथ की रोटी के स्वाद से दूर हो जाता है। छोटे से कमरे में एक पलंग पर उल्टा पड़कर रात भर सिसकना मजबूरी हो जाती है। वो घर का बड़ा सा चौक, पिताजी के जमाने का पंखा, चूल्हे की रोटी, सिल बट्टे पर पीसी लाल मिर्च, लहसुन की चटनी, घर की बगिया में उगा पुदीना, गाय, भैंस का ताजा दूध, मक्खन, दही, लस्सी को तरस जाता है।
थैली में छाछ पीकर डाइट कंट्रोल की बात करता है, थैली के दूध से दिन गुजारता है, पसीनों में भीगे आदमी के हाथ से बनी मैदा की रोटी खाकर बड़ा होने का दिखावा करता है। सुबह ब्लड प्रेशर की दवा लेता है और रात को पेट साफ करने का चूर्ण। कहने को सोशल मीडिया पर हजारों दोस्त होते है लेकिन जरूरत पर संभालने वाला एक नहीं मिलता। सब कुछ इंसान तूने हासिल कर लिया लेकिन इसकी आड़ में वो सब कुछ छोड़ दिया जो सबसे जरूरी था।
मां बाप छोड़ दिए, भाई भाभी का साथ नहीं रहा, भतीजे भतीजी का प्यार धरा रह गया, बहन से तकरार हवा हो गई। खुली और शुद्ध हवा गायब हो गई, घुटन भरे कमरे और दीवारों में सिमटी तेरी जिंदगी हो गई। अब बता तू कैसे बड़ा इंसान हो गया?
डॉ ऊरुक्रम शर्मा