Aravalli Crisis in Rajasthan: अरावली को लेकर राजस्थान में सियासी हलचल मची हुई है। कांग्रेससड़क पर उतरकर आंदोलन कर रही है, वहीं एनजीओ भी अपने स्तर पर विरोध जता रहे हैं। वहीं केन्द्र सरकार ने साफ कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या करके कांग्रेस लोगों को भ्रमित करने का काम कर रही है। जबकि हकीकत में सुप्रीम कोर्ट ने परिभाषा स्वीकृत करने के साथ ही कहा है कि अरावली में कोई नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली भू-आकृतियों को ही ‘अरावली’ माना जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली की परिभाषा देने के साथ ही कहा कि अरावली में कोई नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने साफ किया है कि आप धरती से अगर खनिज निकाल रहे हो उसकी क्षतिपूर्ति मतलब उसको हरित करके तो वापस दो। बहुत क्रिटिकल मिनरल की माइनिंग को भी बहुत एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी तरीके से दिया जाएगा। अरावली क्षेत्र में जो रिजर्व फॉरेस्ट, सेंचुरी, टाइगर रिजर्व हैं, वहां पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। केवल यही नहीं वहां के जो कोर एरिया से ईको सेंसेटिव जोन (ESZ) आएगा। वहां एक किलोमीटर की दूरी तक माइनिंग प्रतिबंधित है। जहां से जल स्त्रोत निकलते हैं, जैसे- अरावली में आनासागर और फायसागर अजमेर में हैं। उदयपुर की झीलें हैं। माउंट आबू झील है या जो रामसर साइट है। जैसे अपनी सिलीसेढ़ है, जो सांभर झील है। यहां से 500 मीटर तक माइनिंग प्रतिबंधित रहेगी। हां से पानी स्त्रोत निकलते हैं जैसे- लूणी का, माही का और बनास का जल सोर्स, उन एरिया में भी माइनिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित होगी। इसके साथ ही साथ अरावली में जो माइनिंग चल रही है, उसे व्यवस्थित किया जाएगा।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए यादव ने कहा कि उनकी कोई रिपोर्ट खारिज भी नहीं हुई और स्वीकार भी नहीं हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बनाई जिसमें पर्यावरण मंत्रालय के सेक्रेटरी को रखा। अरावली में दिल्ली में तो खनन हो ही नहीं सकता है। वहां बैन है। केवल 2 प्रतिशत में ही माइनिंग हो सकती है। इससे ज्यादा तो हो ही नहीं सकता है।
जब साइंटिफिक मैनेजमेंट प्लान बना लोगे तो टाइगर रिजर्व, वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में सब छोटी-बड़ी पहाड़ियां बैन हैं। जलाशय के आस-पास भी ऐसा ही नियम है। जहां शहर आ गए हैं, वहां तो माइनिंग हो ही नहीं सकती है। अब जहां पर 100 मीटर के बीच का जितना भी क्षेत्र है वो सब श्रृंखला के रूप में चिह्नित होगा। इसके बाद भी माइनिंग तब तक नहीं होगी, जब तक एक साइंटिफिक मैनेजमेंट प्लान न बन जाए और ICFRE की स्वीकृति न मिल जाए। हमारी मुख्य समस्या अवैध खनन है। पुलिस अगर केस भी दर्ज कराना चाहेगी तो जो चिह्नित ही नहीं है तो उसे अवैध खनन में कैसे कहोगे? इसलिए अरावली को पूरी तरह से आइडेंटिफाई करने का प्रयास है।