Rajkumar Roat News: रात नहीं ख्वाब बदलता है, मंजिल नहीं कारवां बदलता है; जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि, किस्मत बदले न बदले , पर वक्त जरुर बदलता है। ये पंक्तियां सटीक बैठती है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी के खेल में देश का नाम रोशन करने वाले लिंबरामजी अहारी (Limba Ram Ahari) के जीवन पर। जी हां बीते दिनों लिंबरामजी अहारी दिल्ली में थे और इसी दौरान उनकी मुलाक़ात हुई, राजस्थान के बांसवाड़ा-डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत से। राजकुमार रोत जोकि न सिर्फ सांसद है बल्कि आदिवासी समाज के लोगों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करते है। साथ ही भारत आदिवासी पार्टी के बड़े कद्दावर नेता भी है।
आदिवासी समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधि राजकुमार रोत जब दिल्ली में इंटरनेशनल आर्चर लिंबरामजी अहारी (Limba Ram Ahari) से मिले, तो ख़ुशी होना लाजिमी थी। सांसद रोत की ख़ुशी उनके द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर की गई उनकी पोस्ट से भी साफ़ झलकती है।
रोत ने अपनी X पोस्ट पर लिखा –
आज दिल्ली में उस शख्स से मुलाकात हुई, जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से निकल कर भारत का नाम विश्व पटल पर रोशन किया। इन्होंने आर्चरी में तीन ओलंपिक सहित अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया। … और 1992 में एशियाई तीरंदाजी चैपियनशिप में विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की।
रोत ने आगे लिखा-
लिंबरामजी अहारी ने अर्जुन अवार्ड 1991, पद्मश्री अवार्ड 2012, सुनील गावस्कर अवार्ड, महाराणा प्रताप अवार्ड एवं अन्य कई अवार्ड जीते। ये गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार के हकदार भी थे, जो नहीं मिला। उनके इस हक की लड़ाई को अब हम लड़ेंगे। आज उनसे मिल के दिल खुश हो गया। कुदरत से दुआ करते है कि वो बहुत जल्द स्वस्थ हो जाये।
संघर्षों से भरा रहा लिंबरामजी अहारी का जीवन
लिंबरामजी अहारी राजस्थान के उदयपुर जिले की झाडोल तहसील से आते है। उनका परिवार अहारी जनजाति से ताल्लुक रखता है। गरीबी के कारण, लिम्बा राम अपने देशी बांस के धनुष और ईख के तीर से जंगल में गौरैया, तीतर जैसे पक्षियों के साथ-साथ अन्य जानवरों का शिकार किया करते थे।
सन 1987 में उनके एक चाचा ने खबर दी कि, सरकार अच्छे तीरंदाजों को प्रशिक्षित करने के लिए पास के गांव मकरादेव में परीक्षण आयोजित करेगी। इसके बाद, चार लड़कों को विशेष क्षेत्र खेल कार्यक्रम के लिए नई दिल्ली भेजा गया, जो आर.एस. सोढ़ी की कोचिंग में चार महीने का प्रशिक्षण शिविर था। आदिवासी कल्याण के लिए काम करने वाले RSS से जुड़े संगठन ‘अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम’ के दावे के मुताबिक, उसने एकलव्य खेलकूद प्रतियोगिता के ज़रिए लिम्बा राम की प्रतिभा को पहचाना था। इसके बाद लिम्बा राम नहीं रुके और एक के बाद एक सफलताएं अर्जित की।
लिंबाराम ने की विश्व रिकॉर्ड की बराबरी
1990 में, उन्होंने बीजिंग एशियाई खेलों में भारत को चौथा स्थान दिलाने में मदद की। उन्होंने तीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1992 में, उन्होंने बीजिंग एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में 30 मीटर स्पर्धा में 358/360 के स्कोर के साथ ताकायोशी मात्सुशिता (Takayoshi Matsushita) के विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की और स्वर्ण पदक जीता। 1996 में वे एशियाई रिकॉर्ड के साथ राष्ट्रीय चैंपियन भी बने।
गंभीर चोट ने खेल से किया हमेशा के लिए दूर
भारत सरकार ने उन्हें 1991 में अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्म श्री से सम्मानित किया। 1996 में ही लिम्बा राम टाटा समूह में शामिल हो गए। उसी वर्ष कोलकाता में प्रशिक्षण शिविर में फुटबॉल खेलते समय उन्हें कंधे में गंभीर चोट लग गई। वह धनुष चलाने में असमर्थ हो गए और उनका ध्यान और एकाग्रता खो गई। इस समस्या के कारण उन्होंने टाटा में अपनी नौकरी छोड़ दी। वह 2001 में पंजाब नेशनल बैंक में कैशियर के रूप में शामिल हुए। साल 2003 में, उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित तीसरे राष्ट्रीय रैंकिंग पुरस्कार राशि तीरंदाजी टूर्नामेंट में भाग लिया, लेकिन 16वें स्थान पर रहे।